Rajani katare

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करिया मोड़ी भाग ---- 1

                    " करिया मोड़ी " भाग -1

करमु की बजरिया टोरी में अपनी परचून (किराना) 
की एक छोटी सी दुकान है,जहाँ गाँव (करैया) का साप्ताहिक बाजार भरता है,दो बेटियाँ हैं उसकी बड़ी गौरी फक्क सफेद दूध जैसी सो शान्ति बाई करमु की माँ ने उसका नाम गौरी रख दिया.... 
पहली बेटी हुयी सो कुड़कुड़ाई तो खूब.... 
कायसे...? नौ महिने से बेटा पाने की लालसा जो थी.... बहू की खूब सेवा सुश्रूषा करी... बेटा होगा.. 
अब जब लड़की हुयी सो... स्वाभाविक था.... सिर 
पीटना.... अपने मुखारविंद से अपशब्दों की झड़ी 
लगाना.... पर ये क्या...? जैसे ही!!भूरी दाई ने बच्ची को....शान्ति की गोदी में डाला!! 

बच्ची के मुख को देख कर तो... भौचक्की रह गयी 
इतना सुंदर रुप... दूध जैसी फक्क सफेद.....
शान्ति बाई का गुस्सा काफूर हो गया.... बच्ची को गले से लगा कर खूब प्यार करा......
झट अपने पल्ले से गांठ खोली.... दस रुपैया की 
न्योछावर कर भूरी को थमा दी........

शान्ति देवी अपने स्वभाव के बिल्कुल विपरीत काये 
जमनाऽऽ बहुतई सुंदर दूध सी फक्क मौड़ी...जनी 
(पैदा) आये तैने तो!! रामदई ऐको तो गौरी नाम धर हूँ मैं....हमरी लाड़ो आये जा तो हमरी राजदुलारी...

काये करमु दुकान से आत बैरा (समय) हरीरा को 
सामान लेत अईयौ....हाँ ओ रामदीन पंडा को सोई 
बोल दईओ....छठी के दिना नाम धराई करवा दैहे...

साल भर ही होने को आया था.... जमना के पाँव 
फिर भारी हो गये.... अब तो शान्ति बाई को फिर से 
बेटे की आस बँध गयी.... जमना दिन भर काम में 
जुती रहती.... चूल्हा चौका.... लीपना पोतना.... 
सभी कुछ.....बच्ची को भी जी भर के प्यार न कर 
पाती.... सासु माँ जो लिए रहती अपने पास.... 
दूध पीने भर देतीं बच्ची को..... 

भुंसारे (प्रातः) से पीर (दर्द) उठ रही थी जमना को, 
जचकी का समय जो आ गया था... झट करमू गया, 
भूरी दाई को बुला लाया.....ऐ भूरी मोड़ा की खबरंई
दईयो....कछु धोती वोती ने दैहुँ....... 

भूरी का करिये बिचारी...डरात डरात बाहरे आयी...
मुँह लटकाये.... मोड़ी भई आये.... कहके बाहरे 
दौड़ लगा दी.... उसने सोची शान्ति बाई को काहे 
कौप भाजन (गुस्से की शिकार) बनें.....

जमना पे तो जैसे गाज (बिजली) ही गिर गयी....
शान्ति बाई का तो पारा सातवें आसमान पर...
कही थी हमने... काये जमना.... ऐ बार मौड़ा भओ
चईये फिरकै मौड़ी जनी आये... का करिये....मैं तो 
हाथ ने लगाऊँ ऐके लाने...... 

अब जमना बच्ची को भी सम्हाले.... घर के सारे 
काम काज भी.... ऊपर से रोज गालियाँ सासु माँ की....और तो ओर खाना भी ढंग का नहीं... कोई 
उसका ध्यान नहीं रखने वाला.... सो कमजोरी बढ़ती गयी.......

जमना चूल्है पर रोटी सेंक रही थी....अचानक उठी सो जाके उल्टी करने लगी...जैसे ही उल्टी करने की आवाज सुनी.... सो शान्ति बाई ने हाथ पकड़ा... 
चल अब्बयीं औझा के इते.... दबाई करवा हूँ.... 
अबकी बेर तो मौड़ा भओ चईये......

इस बार तो पूरे नौ महिने खूब झाड़ फूंक... भभूत..
टौने टौटके  सभी कुछ करवा लिए शान्ति बाई ने 
लड़का पाने की चाहत में.....

फिर भूरी दाई को बुलवाया गया....ताकीद भी कर 
दी...भूरी मोड़ा ही हुईये ऐ बार...सो चाँदी को छल्ला
तो तुमाओ पक्को ही समझो......

भूरी बाहरे आयी...पोटली सी बँधी... शान्ति बाई की गोदी में डाल के... बाहर की तरफ भाग गयी... 
मन में सोचती जा रही.... चाँदी को छल्ला तो का... 
गालियों की बौछार होने हती.... सो जान बची.... 

जा करमजली.... मोड़ा को डार के.... ऐंसी कैसी दौड़ लगा दयी...अब शान्ति बाई ने जैसे ही उसका
कपड़ा हटाया... सो मूड़ पे हाथ धर के.... ऐ जमना 
जो का कर दओ तैने.... ओ औझा की नास हुयी जाये.... करमजली नासमिटी... हमाओ बंस (वंश) मिटा दओ री तोनै.... करम फूट गये हमार.... जा मोड़ी जनी....बिछौना पे पटक दयी मोड़ी को.... 
ऐ भगवान काये की सजा दयी हमाये लाने.... इत्तो 
पूजा पाठ... झाड़ फूंक.... रुपैया लूट लओ औझा ने.... ऐ जमना का बिगाड़ो हमने तोरौ.... मोड़ी जन 
दयी... ओ भी करिया मौड़ी.....
क्रमशः--

  कहानीकार -रजनी कटारे 
      जबलपुर (म. प्र.)

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5 Comments

रतन कुमार

21-Nov-2021 05:45 PM

वाडिया कहानी

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Zakirhusain Abbas Chougule

20-Nov-2021 07:36 PM

बहुत खूब

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Kavita Jha

20-Nov-2021 07:14 PM

बहुत ही सुन्दर कहानी 👌👌

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